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Pehli mohabbat - Hindi Kavita - Love Poetry - Pehla pyaar - Hindi poem - Gold Poem

Pehli mohabbat

Pehli mohabbat

आज मुलाकात हुई मेरी फिर उससे,ताजे हो गये साथ के सारे वो किस्से...
उसने भी मुरकर देखा मुझे जैसे मैं उसे देखती रही,किसके साथ होगा ये अब,मैं मन ही मन  सोचती रही...
मजबूरी ही थी जाने की वजह नहीं तो वो बरे जिगर का था..
उसकी खूश्बू कमरे तक आती थी जब भी वो गलियों से गुजरता था
हाथ पीले थे मेरे फिर भी मैं उससे मिलने गई थी,गलत नहीं था वो पर मैं भी अपने जगह बहुत सही थी...
उस दिन वो मेरे सारे जज्बात एक झोले में समेट कर लाया था जब वो मुझ्से मिलने मेरे शादी के दिन आखिरी बार आया था....
फिर खतों को मेरे हाथ में रख बता दिया की वो इस दुनिया से ना लर पाया ....
जिगर वाला तो बहुत था बस मुझ्से मोहब्बत ही ना पूरी कर पाया...
कहता था मजबूरी है,मजबूरी है,पर कभी उसने वो मजबूरी बताया ही नहीं,कहता था शादी के बाद हमलोग दोस्त तो रह ही सकते हैं,मैं इंतेज़ार करता रहा पर वो कभी लौट के आया ही नहीं
उसके आंखों से उस दिन आंसू रुक नहीं रहे थे पर खुद्के चेहरे पर रुमाल बांधकर बचा रहा था
सच मुच हिम्मत वाला था... वो,उसके सामने देखता रहा जब कोई और मेरी मांग को सजा रहा था...
उससे मेरी झुम्के की जिद थी,उस दिन वो तौफे में मेरे लिये झुम्के लाया था,बहुत दिनो बाद मेरे... दोस्त मुझे बता रहे थे कि हाँ वो तेरी शादी में भी आया था।।।
मेरे जेहन में ये सारी बातें बस अभी चल ही रहे थे,एक अर्से बाद  कुच ख्वाब फिर से पल रहे थे
तभी मैनें पीछे मुरकर देखा,वो कदम मेरी तरफ तो बढ़ा रहा था पर दो नन्हें से कदम उसके साथ चल रहे थे,
वो मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत शाम था
जब पता चला कि उस नन्हीं सी परी का नन्दिनी ही नाम था

--nandini writes

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