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Showing posts with the label LOVE POETRY

School ka Pyaar- Hindi- Poetry- Love Poem-Poem on School Love - Gold Poem

स्कूल का पेहला दिन था उसका,वो थोरी घबराई थी सब देख रहे थे उसको,नई थी और दूसरा थोरा लेट जो आई थी  सब दौरे उसका नाम पूछने साथ मेरे भी दो यार जगये थे.... जब देखा था पेहली दफा उसे तभी हम अपना दिल हार गये थे चेहरे से मासूम थू बिल्कुल और बरी सिम्पल नज़र आती थी,जब भी हस्ती थी वो,तो उसकी cute सी डिंपल बन जाती थी.... उसे हसाने को अब मैं खुद का भी मज़्ज़ाक बनाता था,उसे जैसा पसन्द होता मैं बिल्कुल वैसा बन जाता था .... अब जो मैं कभी लेट जाता तो मेरे दोस्त खुद उठकर मुझे उसके साथ बिठाते थे.... यारों को तो छोर हाय दो,मुझे दूसरे भी उसके नाम से चिधाते थे बहुत दिन बीत चुका था अब वो खुद मेरे लिये अपने बगल में जगह बचती थी अब जब भी अचानक देखता उसको तो वो भी मुझे ही देखते नज़र आती थी अब लगता था जैसे मुझे ही नहीं उसे भी मुझ्से प्यार हो रहा था,हर बात बताती वो मुझको,अब शायद मैं उसका दिलदार हो रहा था.... मैनें अब ठान लिया उसे अपनी प्यार जतानी है,कुछ भी हो जाये उसे दिल की बात बतानी है उसे पसंद थी बनावटी चीजें मैंने उसके नाम का लव कार्ड बनाया था .... कुछ गर्बर ना हो जाये ...

चहाची विविध रूप- मराठी कविता - चहा मराठी कविता - Marathi Kavita on Tea - Chai Marathi Poetry

चहाची विविध रूप चहाच आणि माझं नातं अगदी जवळच  जिवाभावाच्या मैत्रिणीचं       लहानपणापासुन दुधापेक्षा      आवडीचा म्हणजे चहा        कधी कधी कॉफीही घेतली जायची     पण मी मात्र चहाच्याच तंद्रीत असायची  पावसाळ्यतला आल्याचा चहा  हिवाळातल्या गवती चहा  उन्हाळ्यातला सवयीचा भाग झालेला चहा  आजारपणातला घेतलेला  काढा वजा चहा  हरिमंदिरातला अमृततुल्य चहा  कुणाकडचा पाहुणचाराचा चहा मी कधी नको असताना मिळालेला चहा  कधी खुप गरज असताना न मिळालेला चहा  काकाश्रींच्या आठवणीत वर्षभरासाठी सोडलेला चहा        अशी चहाची अनेक विविध रूप         मनाच्या एका कप्यात साचलेली         अनामिक हुरहूर निर्माण करणारी         आज  शब्दबद्ध झाली  कुणी त्याला विष म्हणो  कुणी इंग्रजांनी आणलेलं पेय म्हणो  पण चहाशी असणार  आपलं नातं कुणी नाकारू...

Pehli mohabbat - Hindi Kavita - Love Poetry - Pehla pyaar - Hindi poem - Gold Poem

Pehli mohabbat Pehli mohabbat आज मुलाकात हुई मेरी फिर उससे,ताजे हो गये साथ के सारे वो किस्से... उसने भी मुरकर देखा मुझे जैसे मैं उसे देखती रही,किसके साथ होगा ये अब,मैं मन ही मन  सोचती रही... मजबूरी ही थी जाने की वजह नहीं तो वो बरे जिगर का था.. उसकी खूश्बू कमरे तक आती थी जब भी वो गलियों से गुजरता था हाथ पीले थे मेरे फिर भी मैं उससे मिलने गई थी,गलत नहीं था वो पर मैं भी अपने जगह बहुत सही थी... उस दिन वो मेरे सारे जज्बात एक झोले में समेट कर लाया था जब वो मुझ्से मिलने मेरे शादी के दिन आखिरी बार आया था.... फिर खतों को मेरे हाथ में रख बता दिया की वो इस दुनिया से ना लर पाया .... जिगर वाला तो बहुत था बस मुझ्से मोहब्बत ही ना पूरी कर पाया... कहता था मजबूरी है,मजबूरी है,पर कभी उसने वो मजबूरी बताया ही नहीं,कहता था शादी के बाद हमलोग दोस्त तो रह ही सकते हैं,मैं इंतेज़ार करता रहा पर वो कभी लौट के आया ही नहीं उसके आंखों से उस दिन आंसू रुक नहीं रहे थे पर खुद्के चेहरे पर रुमाल बांधकर बचा रहा था सच मुच हिम्मत वाला था... वो,उसके सामने देखता रहा जब कोई और मेरी मांग को सजा रहा...

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